आज पूरे देश में राष्ट्रवाद की प्रबल लहर है। इस राष्ट्रवाद के कारण ही राष्ट्रवादी सरकार पुन: सत्ता में आ पाई है। इस राष्ट्रवाद का संवाहक और संचालक है हिंदू। आज हिंदू कहीं ना कहीं अपने अस्तित्व को जिंदा रखने के लिए जागृत होता जा रहा है। आज वह अपने साथ होने वाले भेदभाव के प्रति सजग है। आज हिंदू खुद के प्रति होने वाले दमन एवं अत्याचार के विरुद्ध प्रतिकार करने को तत्पर दिखता है।
जहां एक और हिंदू जागृत होता दिख रहा है वहीं दूसरी ओर इसको बहुत सी जातिगत विसंगतियां सतह पर लाने लगी है। मौजूदा समय में अगर हमें इस्लामिक अतिवाद के खिलाफ एकजुट होना है तो इसके लिए हमें अपनी पहचान को जातिगत आधार पर खोजने के बजाय हिंदू एकता के रूप में स्थापित करनी होगी।
अभी हाल ही में आम चुनाव संपन्न हुआ हैं। तमाम जातिगत समीकरणों को तोड़ते हुए केंद्र में एक राष्ट्रवादी सरकार को प्रचंड जनादेश मिला। जीत के इस खुमार के बीच हमें अपने ध्यान को विशेष बिंदुओं पर केंद्रित करना होगा। जब हम खुद को हिंदू इकाई के रूप में देखने का प्रयत्न करते हैं तो हमें बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन कठिनाइयों में सबसे प्रमुख है जातिवाद।
हिंदू जागरूक हो रहा है लेकिन प्रश्न उठते हैं कि क्या हम अपनी जाति की बेडियों को तोड़कर संगठित हो रहे हैं? क्या हजारों सालों से शोषित पीड़ित समाज में तिरस्कृत दलित समाज हिंदू जन जागरण का हिस्सा है ? क्या इस समाज के बिना हिंदुत्व की अवधारणा पूरी हो सकती है? क्या यह समाज अपने आप को हिंदू संस्कृति का हिस्सा मानने को तैयार है?
बिना दलित समाज के हिंदू एवं हिंदुत्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आज दलित समाज के सामाजिक उत्थान एवं आर्थिक सशक्तिकरण के कई प्रयास के कारण दलित चेतना का जागरण भी हो रहा है। दलित समाज सशक्त हो रहा है लेकिन इस जागृति के साथ वह हमारी सनातन संस्कृति से दूर होता जा रहा है। आज दलित लोगों के लगातार धर्म परिवर्तन की खबरें आती रहती हैं। आज दलित समाज का एक तबका हिंदू रीति-रिवाजों तीज त्योहारों को त्यागता जा रहा है। यहां तक कि हिंदू देवी देवताओं तथा प्रतीकों के अपमान से भी गुरेज नहीं करता है। आज इन लोगों के अंदर प्रतिशोध की भावना प्रबल होती जा रही है। अखंड हिंदुत्व की कल्पना सभी जातियों के एकीकरण के बिना संभव नहीं है। हमें निश्चित रूप से समझना होगा कि जब तक हम पिछड़ों,शोषित,पीड़ितों,आदिवासियों को सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से तिरस्कृत समाज से सनातन संस्कृति की मुख्यधारा में शामिल नहीं कर लेते हैं तब तक हिंदू संगठित नहीं हो सकता है। हमें स्वीकार करना होगा की विकृत जाति व्यवस्था के कारण समाज के एक तबके के साथ बहुत गलत हुआ। हमने उन्हें अछूत बना कर रखा कभी उन्हें अपनी संस्कृति का हिस्सा नहीं माना। उनके साथ हमेशा भेदभाव हुआ है। उनका दमन किया गया है और हमें अपनी एक गलती स्वीकार करनी होगी कि हमने इस समाज को सनातन संस्कृति का हिस्सा बनने से रोका है। अपने पूर्वजों कि इन तमाम गलतियों को स्वीकार करते हुए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में यह गलतियां ना दोराई जाएं। यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि अपने दलित परिवारों को यह एहसास कराया जाए की वें भी हमारे अपने हैं और वें भी हमारी इसी संस्कृति का हिस्सा है। भगवान राम जितने हमारे हैं उतने ही उन लोगों के भी हैं। संत रविदास जी जितने उनके हैं उतने ही हमारे भी हैं। हमें उन्हें बताना होगा कि तमाम जातिगत विसंगतियों के बावजूद श्रीराम को बेर खिलाने वाली मां शबरी, रामायण लिखने वाले वाल्मीकि जी, महाभारत लिखने वाले वेदव्यास जी, प्रभु श्री राम को अपनी नाव में नदी पार करवाने वाले भक्त केवट जी, संत रविदास जी तथा अनेकों संतों को इस संस्कृति ने स्वीकार किया तथा सर्व समाज में आदर सम्मान भी दिया।
हम देख रहे हैं कि जैसे जैसे हिंदू संगठित हो रहा है कुछ राष्ट्र विरोधी एवं राजनीति से प्रेरित लोग हिंदू समाज को जातिगत आधार पर बांटने का प्रयास कर रहे हैं स्वर्णो तथा दलितों को आपस में भड़काया जा रहा है। ऐसे लोग कुछ हद तक सफल भी हो गए हैं। कहीं ना कहीं स्वर्ण और दलितों के बीच वैमनस्य पैदा हुए हैं। आज हम लोगों के सामने इस खाई को भरने की चुनौती है और मैं अपनी विचारधारा से जुड़े अपने भाइयों को वचन देता हूं कि मैं Aayudh Singh आखरी सांस तक अपने इस लक्ष्य के लिए समर्पण व त्याग की भावना से कार्य करता रहूंगा।

Aayudh Singh is working for all sections of society by rising above casteism